December 17, 2011

लौटती आंधी

A small attempt at what we have seen and we perhaps will, regarding the Jan Lokpal bill.
Standing besides, "the man of the year 2011"(undoubtedly), i end this piece with an appeal.
Do speak !
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उमड़ता हर्ष 
एक क्षण हलचल 
बिगुल की गूँज
समेटे सपनो का महल |


उस पार भी शोर था
हलचल बाँधने पर ज़ोर था
क्यों हो रही थी हत्या उस हर्ष की 
खैर, 
वो थे शोर में बहरे, उनका क्या कसूर था ?

आंधी आवाज़ की उठी भी थी
साथ नमी समेटे भी थी
ना कोई स्पंदन, ना कोई सिहरन 
डोर ना जाने कौनसी 
अंतर्मन को लपेटे सी थी |

वही पहर लौट के आने लगा है
असमंजस का बादल फिर छाने लगा है
दिल से पूछूँ, तो यहीं बरसेगा,
पर कुछ है जो कहता है
"देखो, जाने लगा है !"

क्यों ना अब उस बादल को रोकें
खोलें इस आंधी में झरोंखे
आओ यारों गठित होकर
पुलकित मन वह वर्षा देखें |


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